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Hindi story बहु के आदर्श

                                       बहु के आदर्श

नमस्ते दोस्तों आज मै एक बार फिर आप के बीच लेकर आया हूँ एक बेहद ही

प्यारी emotional Family Story तो इसे कृपया पूरा पढ़े और कैसी

लगी ये कहानी जरुर बताये :ये कहानी है  बहु के आदर्श


 शोभा का आलोक संग रिश्ता तय हुआ, जब भी वे फ़ोन पर बातें करते तब दिन एक बार तो वो उसके मुँह से सुन ही लेती मेरी चाची बहुत ही अच्छी है,घर में

सब उनकी बहुत तारीफ करते हैं, तुम उनसे सब सिख लेना, उनके ही नक़्शे कदम पर चलना फिर देखना तुम सबका दिल बड़ी आसानी से जीत लोगी,

जब शादी कर शोभा घर आयी तब भी कई बार बातों-बातों में आलोक के मुँह से ये सब सुन लिया और सही में भी जब शोभा आलोक की चाँची जी से मिली उसे वो बहुत ही अच्छी लगी वे बात करने में बहत ही अच्छी व धीर-गंभीर वे बहुत ही प्यार से शोभा को खाना खिलाती, उस का ध्यान रखती रही थी,नई बहु को क्या-क्या चाहिए, सब ध्यान रखती, सत्य है, अच्छे लोग हमेशा ही सबको अच्छे ही लगते हैं, उन्होंने सब का मन मोह रखा था घर में| शादी के कुछ दिनों तक वे शोभा के साथ रही फिर अपने घर ची गयी दूरसल आलोक के चाचाजी की नौकरी दूसरे शहर थी इसलिए वे वहां रहते थे परिवार से अलग, फिर शोभा का उनसे मिलना बहुत कम ही हो गया अब फोन पर बात होती रहती |

             समय बीतता गया और शोभा दो बच्चों की मां बन गई, शोभा की सास अकसर कहती, देखा मेरी देवरानी को, कभी ऊंची आवाज में बात तक

नहीं करतीं दरसूल आलोक की चाची के, आलोक की माँ से दो रिश्ते थे एक तो वो देवरानी थी और दूर की मौसी की बेटी भी थी शोभा अकसर सोचती, तीन -चार साल के अंतराल से जब कोई इंसान किसी सगे-संबंधी से मिलता है, तब भला उसे ऊंचे स्वर में बात करने की जरूरत भी क्या होगी उसे ?' कभी-कभी वह इस तारीफ़ पर जरा सा चिढ़ भी जाती थी।

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              एक शाम बच्चों को पढ़ाते-पढ़ाते उस ने जरा सा

डांट दिया तो सास ने कहा, कभी अपनी चाची को ऊंचे स्वर में बात करते सुना है तुमने? अरे, अब बच्चों को पढ़ाऊंगी तो क्या चुप रह कर पढ़ाऊंगी क्या ? क्या हमेशा आप सासु माँ और पति दोनों चाची जी की रट लगाए रखती हैं,अपने घर में भी वे क्या ऊंची आवाज में बात नहीं करती होंगी? बरसा की दिल की कड़वाहट निकली तो बस निकल ही गई, अपने घर में भी मुझे कोई आजादी नहीं है,आप क्या जानें कि अपने घर में वे क्या-क्या करती होंगी,दूसरी जगह जा कर तो हर कोई अनुशासित ही रहता है ना | शोभा के पति पति ने बुरी तरह डांट दिया,वह पहला अवसर था जब उस की चाँची के विषय में शोभा ने कुछ ऐसे शब्द कहे थे।

             कुछ दिन सास का मुंह भी फुला हुआ रहा ,उन के घर

की प्रिय सदस्य का अपमान उन से सहा न गया,लेदे कर वही तो थीं, जिन से सासु मां की अच्छे से पटती थी। धीरे-धीरे समय बीता और चाची जी के दोनों बच्चों की शादियां हो गईं,शोभा उनकी शादी में जा ना सकी. पाई क्योंकि उस समय उसके मायके में भी कार्यक्रम था इसलिए सासुमां ने महंगे उपहार दे कर अपना दायित्व पूरा किया था, शोभा के पति आलाक की. तनख्वाह ज्यादा ना थी, सीमित आय में हर किसी से निभाना बहुत कठिन् था, फिर भी जोड़-जोड़

कर शोभा सब निभाने में जुटी रहती, पति एक दिन टूर पर गए तो उस के लिए महंगी साडी ले आए,इस पर शोभा बोली, इतनी महंगी साड़ी की क्या जरूरत थी,माँजी के लिए क्यों नहीं लाए?अरे, इस पर किसी का नाम लिखा है क्या तुम दोनों मिल-जुल कर इस्तेमाल कर लिया करना,शुभा ने साड़ी सास को दे दी,कुछ दिनों बाद कहीं जाना था तो शोभा ने साड़ी मांगी तो पता चला कि माँजी ने वो साड़ी चाची को भिजवा दी। यह सुन शोभा हैरान रह गई, इतनी महंगी साड़ी आप ने ...अरे, मेरे बेटे की कमाई की थी, तुझे क्यों पेट में दर्द हो रहा है बहु ? माँजी, ऐसी बात नहीं है,इतनी महंगी साड़ी आप ने बेवजह ही भेज दी उन्हें ये इतने चाव से लाए थे हमारे लिए बस-बस बहु, मुझे हिसाब-किताब मत सुना, अरे, मैं ने अपने बेटे पर हजारों खर्च किए हैं, क्या मुझे इतना भी हक़ नहीं, जो अपने किसी रिश्तेदार को अपनी मर्जी से कोई भेंट दे सकू? माँजी ने बहू की नाराजगी जब बेटे के सामने प्रकट की, तब वह भी हैरान रह गया और बोला, क्या माँ, मैं बचत के पैसो से इतनी महंगी साड़ी लाया था,पर तुम ने बिना

वजह उठा कर चाची को भेज दी,कम से कम हम से पूछ तो लेतीं।

              इस पर माँजी ने इतना कोहराम मचाया कि घर की दीवारें तक दहल गई शोभा और आलोक मन मसोस कर रह गए। पता नहीं माँ को क्या हो गया है,हमेशा ऐसी जली-कटी सुनाती रहती हैं, इतनी महंगाई में अपना खर्च चलाना मुश्किल है, उस पर घर लुटाने की ये बात मेरे तो समझ नहीं आती ,साड़ी का कांटा आलोक के मन में भी गहरा उतर गया था कुछ समय बीता और एक शाम चाचा जी की मृत्यु का समाचार मिला,माँजी को साथ ले कर शोभा और आलोक वहां पहुंचे, क्रियाकर्म के बाद रिश्तेदार विदा होने लगे, चाची जी चुप थीं, शांत और गंभीर,सदा की तरह रो भी रहीं थीं तो चुपचाप,शोभा को आलोक के शब्द याद आने लगे. मेरी चाचीज जैसी बन कर दिखाना, वे बहुत अच्छी हैं।शोभा के पति और चाचीजी का बेटा सुमित अस्थियां विसर्जित कर के लौटे तो माँजी फिर जोर-जोर कर रोने लगीं, कहां छोड़ आए रे, मेरे देवर को... |शोभा चुप-चाप से सब देख-सुन रही थी, चाचीजी का आदर्श परिवार पिछले १६-१७ साल से कांटे के रूप में उस के हलक में अटका था,उन के विषय में जानने की मन में गहरी जिज्ञासा थी, चाचीजी की बहू रेवती मेहमान-नवाजी में व्यस्त थी और बेटी नीना उस का हाथ बंटाती नजर आ रही थी, एक नौकरानी भी उन की मदद कर रही थी रेवती का साल-भर का बच्चा बार-बार रसोई में चला आता, जिसं के कारण उसे असुविधा हो रही थी शोभा बच्चे को संभालना चाहती, मगर अपरिचित चेहरों को देख बच्चा जोर-जोर से रोने लगता | रेवती बहू, तुम कुछ देर के लिए बच्चे को ले लो, काम मैं कर लेती हूं,शोभा के अनुरोध पर रेवती बच्चे को गोद में ले कर बैठ गई। जब शोभा रसोई में जाने लगी तो रेवती ने रोक लिया, कहा आप बैठिए, काम वाली है ना वो देख लेंगी। रेवती बहुत प्यारी सी, गुडिया जैसी थी, वह धीरेधीरे बच्चे को सहला रही थी कि तभी सुमित आया और गुस्से में बोला, रेवती तुम्हारे मां-बाप कहां हैं? वे मुझ से मिले बिना वापस चल गए? उन्हें इतनी भी तमीज़ नहीं है क्या दामाद् से मिल के जाए ?आप हरिद्वार से दो दिनों बाद लौटे हैं, वे भला आप से मिलने का इंतजार कैसे कर सकते थे सुमित ने कहा,उन्हें मुझ से मिल कर जाना चाहिए था वे दो दिन रुक जाते तो कौनसा पहाड़ टूट जाता,वै दो दिन और यहां कैसे रुक जाते? आप तो जानते हैं न, वे बेटी के घर का पानी तक नहीं पीते,बात को खींचने की क्या जरूरत है, कोई शादी वाला घर तो था नहीं जो वे आप का इंतजार बकवास बंद करो, अपने पिता की ज्यादा वकालत मत करो,सुमित तिलमिला गया। तो आप क्यों उन्हें ले कर इतना हंगामा मचा रहे हैं ? क्या आप को बात करने की तमीज नहीं है? क्या मेरे पिता आपके कुछ . नहीं लगते ?चुप...आप भी चुप रहिए और जाइए यहां से।

           शोभा हैरान रह गई,उस के सामने पति-पत्नी आपस में भिड़ गए थे,ज्यादा दोषी उसे सुमित ही नजर आ रहा था खैर, अपमानित हो कर वह बाहर चला गया और रेवती रोने लगी |जब खो तब मेरे माता-पिता को अपमानित करते रहते हैं, मेरे भाई की शादी में भी यही सब किया इन्होने, वहां से रूठ कर ही चले आए, एक ही भाई है मेरा, मुझे वहां भी चैन की सांस नहीं लेने दी,सब के सामने ही बोलना शुरू कर देते,कोई इन्हें मना भी नहीं करता,कोई समझाता भी नहीं शोभा क्या कहती,फिर मौका मिलते ही शोभा ने चाची की समझदार बेटी नीना से कहा,नीना , जरा अपने भाई को समझाओ, क्यों बिना वजह सब के सामने अपनी पत्नी का और उस के माता-पिता का अपमान कर रहा है तुम उस की बड़ी बहन हो तो डांट कर भी समझा सकती हो,कोई भी लड़की अपने माता-पिता का अपमान नहीं सह सकती।उस के माता-पिता को भी तो अपने दामाद से मिल कर जाना चाहिए था, रेवती को भी समझ से काम लेना चाहिए, क्या उसे पति का ध्यान नहीं रखना चाहिए, वह भी तो हमेशा सुमित को जली-कटी सुनाती रहती है? शोभा चुप रह गई और देखती रही कि रेवती रोते-रोते हर काम कर रही है, पर किसी ने उस के पक्ष में दो शब्द भी नहीं कहे खाने के समय सारा परिवार इकट्ठा हुआ तो फिर सुमित भड़क उठा, अपने पिताजी को फोन कर के बता देना कि मैं उन लोगों से नाराज़ हूं,आइंदा उनसे कभी नहीं मिलूंगा | तभी शोभा के पति ने उसे बुरी तरह डॉट दिया, तेरा दिमाग ठीक है कि नहीं? पत्नी से कैसा । व्यवहार करना चाहिए,

यह क्या तुझे किसी ने नहीं सिखाया सुमित ? चाची जी क्या आप ने भी नहीं?शोभा से सहन नहीं हुआ तो उसने रेवती का पक्ष लेते हुए कहा । लेकिन चाची

हमेशा की तरह चुप थीं.आलोक ने भी कहा,हर इंसान की इज्जत उस के अपने हाथ में होती है, पत्नी का हर पल अपमान कर के, वह भी दस लोगों के बीच में, भला तुम अपनी मर्दानगी का कौन सा प्रमाण देना चाहते हो. सुमित ? आज तुम उस का अपमान कर रहे हो, कल को वह भी करेगी, फिर कहां मुँह छिपाओगे? अरें, इतनी संस्कारी मां का बेटा ऐसा बदतमीज होगा सोचा नहीं था।

                  वहां से वापस आने के बाद भी शोभा चाची के अजीबो-गरीब व्यवहार के बारे में ही सोचती रही कि सुमित की गलती पर वे क्यों खामोश बैठी रहीं ? गलत को गलत नहीं कहना कहां तक उचित है? एक दिन शोभा ने गंभीर स्वर में आलोक से कहा, मैं आप की चाची जैसी नहीं बनना चाहती आलोक जो

औरत पुत्र के मोह में फंसी, उसे सही रास्ता नहीं दिखा सके, वह भला कैसी आदर्श हुई ? क्या बहू के पक्ष में वे कुछ नहीं कह सकती थीं, ऐसी भी क्या चुप्पी, जो गूंगेपन की सीमा तक पहुंच जाए, आप दोनों ने कहावत तो सुनी होगी दूर के ढोल सुहावने होते हैं, यहाँ भी वो ही था बस यह सुन र भी आलोक और शोभा की सास दोनों ही खामोश थे, फिर उन्होंने कभी नहीं कहा,चाची जैसा बन |

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